सोमवार, 30 मार्च 2015

पाकीजा

नादिर नादिम छोड़ सनम
हम नादानी कर बैठे है
नदीम से नाता नाताकात कर
ऐसी हिमाकत कर बैठे हैं

फ़िराक़ में तेरी मेरे मुहाफिज
ऐसा कदम धर बैठे हैं
न फिर आई वो नौबहार
आजाब अजम कर बैठे है

ख़ानुम तेरे ख्यालों का
पाकीजा है दिल मेरा
एक अदम इज्जत के खातिर
ये जुलुम कर बैठे हैं

1नादिर = चाहने वाला ,२ नादिम= लज्जायुक्त
३ नाताकात =तोड़कर ४ आजाब =दर्द
५ ख़ानुम=राजकुमारी ६ पाकीजा =शुद्ध
७ अदम =शून्य

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here पाकीजा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें