जब जमीं को भिगोती हुई बरसात याद आ गई।
  तेरे  पहलू में थी  लिपटी वो रात  याद आ गई।
बूंदों की छमछम में तेरे पायल की रुनझुन सुनी
  आँखों ने आँखों से कह दी वो बात याद आ गई।
प्यार को खेल समझा नहीं,प्यार में ही मिट गए।
  पर वक़्त की शह ने दी जो वो मात याद आ गई।
जी रहा हूँ इससे ज्यादा और क्या मैं शिकवा करूँ।
  तेरी हंसी के बदले मिली दर्द की सौगात याद आ गई।
आज जब एक और दिल को देखा ठोकरें खाते हुए।
  तब तुमसे हुई  वो आखिरी मुलाक़ात याद आ गई।
                                  वैभव”विशेष”

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