गुरुवार, 12 मार्च 2015

नन्ही कली

माहताब उतरता देखा
है हमने रातों में
नूर भी चमकता देखा
उसकी प्यारी आँखों मे

अध्कोपल सी अधूरी अंजुली
छलक आई सौगातों मे
वीणा सी बज़ती है वन मे
लुटते मोती मुस्कानों मे

छितिज तक रंग उड़ाती
उड़ती तितली बागानों मे
घर भी अब घर बन जाये
लौट आये जो मकानो में

ताज़ी जैसे धरा हो जाये
सावन की बरसातों में
रूबरू जन्नत हो जाये
आए नन्ही कली जो हाथो में

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here नन्ही कली

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें