तुम सुन्दर रूप धरा का
  मै उस पर कही दूर गगन !
  ये दुनिया तब तक अधूरी
  जब तक न हो दोनों का मिलन !!
तुम ठहरी शांत झील सी !
  मै उस कीचड़ का खिलता कमल
  शोभा होती कमल से झील की
  बिना झील नहीं  खिलता कमल !! 
तुम ओस की गिरती बून्द
  मै बंजर भूमि की सुखी घास !
  टपक गिरे तो मोती सी चमके
  तिनके को मिलती जीने की आस !!
मै बहती पवन का वेग
  तुम पुष्प-लता सुगन्धित !
  दोनों जब मिल जाए संग
  जग में जीवन हो जाए आनंदित !!
तुम अथाह प्रेम का सागर
  मै बहता उसका मीठा नीर !
  हम जीवन का बने पर्याय
  एक आत्मा अपनी, भले दो शरीर !!     
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डी. के निवातियाँ ___________@@@
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