मंगलवार, 17 मार्च 2015

तु जब तक न थी....

तु जब तक न थी न था सुकून इस दर्दे ज़िगर को
तुझे देख साँस-में-साँस आई मेरी धड़कन को
तब जाके कहीं करार आया मेरी थकी सी नज़रों को
तेरी ज़ुल्फ़ों ने नई रौशनी दी मेरे मृत जीवन को।

तु जब तक न थी न था बहार इस बसंत को
तुझे देख तेरे होंठों का रंग मिला है इन फूलों को
तेरे बगैर नूर-ऐ-बहार न थी इस चमन को
तुझे देख नूर मिला है चमन को खुशबू भी मिली फूलों को।

तु जब तक न थी न था राग जीवन से इस दिल को
तेरी मस्त बाहों का हार मिला है जबसे मुझको
क्या बताऊँ अद्द्भुत अपूर्व सुकून मिली है मेरे को
कि अब दर लगता है कहीं किसी का नज़र न लग जाये
हमारी मोहब्बत को।

तु जब तक न थी मैंने न माना उस फ़रिश्ते को
तुझे देख यकीन हुआ मानने लगा उस करिश्मे को
बस एक बात इबादत करता हूँ देख तुम्हारी आँखों को
बस! तुम्हारी जरुरत है खली पड़े इस सूने को।

तु जब तक न थी न था ज़स्बात मेरे कलम को
यूं हीं चलता था लिखता न था किसी मोहब्बत भड़ी बातों को
तुझे देख जैसे सार्थकता मिल गई हो मेरे हांथों को
बस शामों-शहर लिखता रहता हूँ तुम्हारी और मेरी हुई बातों को।

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