गुरुवार, 12 मार्च 2015

मुक्तक

!!! मुक्तक

    1. !!!

      करो स्वीकार आलोचनाओ को
      इनसे बेहतरी का सलीका मिलता है
      ये तो दस्तूर है इस दुनिया का
      काँटों बिन गुलाब कहाँ खिलता है __________( १ )

      तन की सुंदरता नहीं किसी काम की
      सम्मान तो उत्तम विचारो को मिलता है
      करो श्रृंगार अपने अंतर्मन मन का
      कमल भी तो सदैव कीचड़ में खिलता है ______( २ )

      खूब करो दिखावे की पूजा, आरती
      फल तो अपने कर्मो का मिलता है
      क्यों खोजते हो रब को काबा, काशी
      भगवान तो अपने बुजर्गो में मिलता है ______( ३ )

      जज्बा बहुत जरुरी है मंजिल पाने के लिए
      किस्मत के भरोसे कहाँ कुछ मिलता है
      कर्मशील खोज लेते है सागर में मोती
      वरना कुए पे बैठा भी प्यासा मिलता है ______ ( ४ )

      अच्छा - बुरा सब समझ का फेर
      वक़्त का पहिया तो चलता जाता है
      कद्र करो हर एक पल की जीवन में
      गुजरा लम्हा फिर कहाँ लौटकर आता है _________ ( ५ )

      लाखो कोटि योनि दुनिया में जीवन पाने की
      इंसान रूप कहाँ इतना आसानी से मिलता है
      करो सम्मान मात - पिता, गुरु और बड़ो का
      इनके आशीषों से ज्ञान का खजाना मिलता है________( ६ )

      !
      !
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      डी. के. निवातियाँ ______@@@

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