ये घटाये,
  कह रही है हमसे,
  आ जरा,
  घुल जा हम मे।
ये हवाये,
  चल रही है इस तरह,
  जैसे वो हो,
  किसी पर फिदा।
नशे मे है,
  ये जग सारा,
  किसी को है,
  न होश यहा।
गुफ्तगू कर रहे है सब,
  अपनी ही बातो मे,
  उल्झे है सब।
कोई यहा,
  मायूस नही,
  अब झिन्दगी से,
  कोई शिकायत नही।
जहा भी ले जाये,
  ये झिन्दगी की राहे,
  हमे कोई परवाह नही,
  इस पल को बस जी ले यही।
क्या पता क्या हो जाये,
  हर पल मे है अलग समस्याए,
  कुछ देर तक इसी विषय पर,
  हो रही थी चर्चा निरन्तर।
कभी भी हमने,
  मुड्कर नही देखा,
  बातो-बातो मे,
  हर वक्त जिन्दगी ने है ये समझाया।
कि वक्त सभी के पास है,
  बस उसे सही तरह से इस्तेमाल करो,
  कुछ नही, तो बस याद करो,
  अपनो के साथ बिताये हुये लम्हो को।
तुम अगर खुशी फैलाओगे,
  तो घम मिट जायेगा,
  तुम अगर ध्यान लगाओगे,
  तो काम से मन नही भटकेगा।
गुफ्तगू चल रही थी देर तक,
  मन्जिल ने दे दी थी दस्तक,
  अब सारी महत्वपूर्न बाते,
  याद थी हमे देर तक।
ढल गया था दिन,
  शाम हो गयी,
  मगर ये गुफ्तगू,
  समाप्त नही हुई।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें