ढूंढ़ता रहता हूँ तुझे ख्यालो में
  तेरे इक झलक पाने  को
  यार जाने के बाद तेरे
  दोस्त बनाया हूँ मयखाने को 
सपने तेरे सजाने के  लिए
  ठुकराया था रस्मो-रिवाजो को
  दिल जा तेरे नाम किया था
  मुझे छोड़ी थी तूने गैर पाने को 
अपने हर खुशियाँ कुर्बा किया था
  तुझे मुस्कुराते हुए देखने को
  पर न समझी थी तू उस वक्त
  इस पागल तेरे आशिक को 
तूने बसा ली है नई जहां
  कुचल के मेरे  अरमानो को
  सदा के लिए न बन बेखबर
  आ वापस इस शहर को 
सहा न जाता है आलम दिल की
  दोस्त बनाया हूँ मयखाने को
  जी रहा हूँ मर-मर के यहाँ
  बस इक झलक तेरे पाने को 
जानता हूँ गलत कर रहा हूँ
  तू पास आ जा समझने को
  चाहे ज़माना कुछ भी समझे
  तू पास आजा मिलने को 

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