बुधवार, 25 मार्च 2015

संवरने लगे।

शृंगार करके स्वयं दर्पण भी संवरने लगे।
चाँद जब देखे उन्हें तो आह भरने लगे।

जर्रा-जर्रा नूर की बारिश में सराबोर है।
भीग कर भी कई दिल प्यासे ही मरने लगे।

मासूमियत से लबरेज आँखों की कशिश
उस पे शोख अदाओं से कत्ल करने लगे।

जब लेने आया रब जमीं पे टूटे दिलों को
एक झलक में वो भी जन्नत की सैर करने लगे।

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