मंगलवार, 17 मार्च 2015

मेरी बिटिया निर्धनी

चन्दन के द्वारे हैं तेरे
मुझ की कुटिया अनमनी
राजी राजी पंख पखारे
अपनी कहानी अनकही

सौरभ का खटोला डोले
खटिया अपनी जर सनी
सप्तरस ले चटकारे
चटनी अपने घर बनी

दुनिया तुमको सर चढ़ाये
मुझ पर घर की धुन तनी
भोज तोरा कूकर बिगाड़े
यहाँ दाल भी नहीं बनी

रास्तों पर सिगरेट सुलगाये
नस्लें तेरी पढ़ी लिखी
तुझ को भी तेवर दिखाए
नीति तेरी घर घढी

कुबेर सा धन कबाड़े
निर्लझ तेरी मनमनी
और मेरा घर बुहारे
मेरी बिटिया निर्धनी

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