सत्कर्म, सदभाव का
  कोई तो अब नाम बनो।
कितने हृदय में रावण जन्मा
  कोई तो अब  राम बनो।
धरा कर रही है विलाप
  कोई सत्य का संग्राम बनो।
पाप की लेखनी रोक सके
  कोई तो अब पूर्णविराम बनो।
अधर्म और दुष्कर्म मार्ग का
  कोई तो अब विश्राम बनो।
जिसमें निश्छल नित प्रीत रहे
  कोई तो ऐसा तपो धाम बनो।
कब तक पराजय का शोक रहे
  कोई तो सफल परिणाम बनो।
कितने हृदय में रावण जन्मा
  कोई तो अब  राम बनो।
                        वैभव”विशेष”

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