बुधवार, 25 मार्च 2015

बेगाना कह गए......... (ग़ज़ल)

    1. वैसे तो मुसाफिर हमदोनों एक पथ के थे
      मगर मजिलो से अपनी कुछ इस कदर दूर रह गए !
      बात बस चार कदम के फासले की थी
      हम दो कदम आगे निकले, वो दो कदम पीछे रह गए !!

      मिल जाएंगे एक दिन वो हकीकत में शायद
      इस आरजू में उनकी हम आजतक तन्हा रह गए !
      इल्जाम -ऐ-अंदाज उनका बड़ा निराला था
      वफ़ा कभी जाहिर नही की, हमको बेवफा कह गए !!

      हर राज को छुपाना उनकी फितरत में था
      पर खामोश रहकर भी नजरो से बहुत कुछ कह गए !
      हमने किया अपने हर राज में शामिल उनको
      वो जानकर भी हमारी हर खबर से बेखबर रह गए !!

      कसूर उनका कहे या अपनी किस्मत का
      खुशी किसे मिली नामालूम, गम अपने हिस्से रह गए !
      बहुत खेला उन्होंने हमारे जज्बातों के साथ
      बात हमदम की थी ये समझकर हम बेजुबान रह गए !!

      सर झुकता है सजदे में उनके आज भी
      भले अपने अरमान आंसुओ की बारिश में बह गए !
      गिल शिकवा क्या करना "धर्म" जमाने से
      जब अपने ही हमे सरेआम दिल से बेगाना कह गए !!
      !
      !
      !
      डी. के. निवातियाँ _________@@@

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