शनिवार, 14 मार्च 2015

बेटी हूँ तो मिटा दिया |

क्या थी मेरी गलती माँ,
जो तूने मुझे मिटा दिया,
अपनी ही हांथो से तूने,
आँचल अपना हटा दिया,

देख न पायी मैं तेरी सूरत ,
कैसी थी माँ तेरी मूरत,
चली गई मैं यहाँ से रोवत,
कैसी थी माँ पापा की सूरत |

बेटी हूँ मैं इसी लिए क्या ,
हाथ अपना हटा लिया ?
क्या थी मेरी गलती माँ,
जो तूने मुझे मिटा दिया ?

यह दुनिया देखने से पहले,
क्यो तूने मुझे सुला दिया,
क्या थी मेरी गलती माँ,
जो इतना बड़ा सजा दिया ?

” बेटी है तो क्या हुआ,ये है आँखों का नूर |
जीने का अद्दिकार छीन कर करो न इनको दूर | ”

संदीप कुमार सिंह |
(हिंदी विभाग, तेज़पुर विश्वविधयालय )
मो.नॉ. +९१८४७१९१०६४०

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