मेरी कब्र पर फूल न चढ़ाना कभी
  मुझे सोते हुए से  न जगाना कभी
  फूल के बदले लेकर दो रोटी ,संग
  किसी भूखे बच्चे को खिलाना कभी  
मान की चाहत नहीं है मुझे
  मुझे हार न पहनाना कभी
  उम्मीद हार बैठे अकिंचन को
  अपने गले लगाना कभी
पीतल या पुष्प मूर्ति पर मेरी
  गलती से भी न चढ़ाना कभी
  निर्लज की जा रही हो जहां नारी
  हिम्मत से चीर ओढ़ाना कभी 
सजाना मत मयत को मेरी
  कब्र पर   पत्थर जुटाना कभी
  बनाकर घरोंदा एक सपनो का
  बाल गोपालों को रिझाना कभी 
मिलना हो जो कभी  मुझसे
  झरनो पर आ जाना कभी
  घड़ों में भर लेना मुझको
  प्यासों की प्यास बुझाना कभी      
मैं देखकर तुम्हें बहुत
  मुस्कुराऊंगा जन्नत से
  सलामती के लिए ,ऊपर
  दुआ के हाथ उठाना कभी  

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