रविवार, 22 मार्च 2015

चुनावी डंका

गली-गली मौहल्ले
नुक्कड़ और चौराहे पर
बज रहा है डंका
भारतीय चुनाव का
संघर्ष और ईमान का
कौन हारे
कौन जीते
सोच रहा है इंसान अब
हिसाब लगाकर वोटों का I
लेकर आशाएँ,भावनाएँ
शायद कोई नेता
बन जाये भगवान
बचाले देश को,
जनता को
मँहगाई की मार से
भ्रष्टाचार से I
निगाहें टिकी है सबकी,
जमी है
कई सालों से
उस पुरुष के लिए
जिसे चुनकर जनता
खड़ी कर रही है आगे
कई वोट देकर I
पुकार रही है
आओ,आओ अब पूरा करो
अपने वादे
जो सुनाये थे
चुनाव से पहले
छाती पीट-पीटकर सबको
जनता को भाग्य मानकर
परिवार मानकर I

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चुनावी डंका

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें