बुधवार, 11 मार्च 2015

भरम

घणूं ही करियो जप
घणूं ही करयो तप
घणी जपी माळा
पण अंतस में तो
रहयो अंधेरो
जमेडा रहया जाळा
घणा ही दिन ढोल्यो ग्यान
लोगां नै भरमाया
करता रहया उजळ धोळिया
सजाता रहया काया
पण छापा तिलक लगाया सूं
राम कद मिलै
अर कद मिलै कबीर
कोरो झूठ को सूत कात्यां
जिका नै मान्या सदगरू
अर चरण खोळर पिया
बै ही हिया पर
सैं सूं ज्यादा हियै पर
घाव दिया
मिट्यो तो कोनी
दूणू बढ गयो भरम
औरां नै ढूंढता ढूंढता
भूलग्या
खुद रो ही धरम

अजीत सिंह चारण
9462682915

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here भरम

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें