उनसे रंजिश हुई है
  दिल में चुभी है
  तन्हाई की खंजर
  ज़िन्दगी बन गई है
  गम की गहरी समुन्दर
  दिल में है कसक
  जीना हुई है दूभर  ………
ज़िन्दगी में आ ठहरी है पतझड़
  मधु -प्रित की चली गई मौसम
  उन्हें याद करते
  बैठी हु दरख़्त निचे
  मेरे तन-मन को जला रही है बैरी पवन
  न आती है आँगन
  पिया की सन्देश लेके कबूतर
  जीना हुई है दूभर ………
जिंदगी रुकी सी है
  अरमा बिखरी सी है
  दिल बावरी याद में
  सीसे की तरह टूट चुकी है
  हर पहर आँखे है तर
  जीना हुई है दूभर ………
किससे वया करे
  दिल की आलम
  मेरे यार है बेखबर
  मेरी अधूरी है संसार
  जीना हुई है दूभर ………

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