गुरुवार, 12 मार्च 2015

जीना हुई है दूभर



उनसे रंजिश हुई है
दिल में चुभी है
तन्हाई की खंजर
ज़िन्दगी बन गई है
गम की गहरी समुन्दर
दिल में है कसक
जीना हुई है दूभर ………

ज़िन्दगी में आ ठहरी है पतझड़
मधु -प्रित की चली गई मौसम
उन्हें याद करते
बैठी हु दरख़्त निचे
मेरे तन-मन को जला रही है बैरी पवन
न आती है आँगन
पिया की सन्देश लेके कबूतर
जीना हुई है दूभर ………

जिंदगी रुकी सी है
अरमा बिखरी सी है
दिल बावरी याद में
सीसे की तरह टूट चुकी है
हर पहर आँखे है तर
जीना हुई है दूभर ………

किससे वया करे
दिल की आलम
मेरे यार है बेखबर
मेरी अधूरी है संसार
जीना हुई है दूभर ………

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