मंगलवार, 3 मार्च 2015

आई होरी की बहार / शिवदीन राम जोशी

आई होरी की बहार, अहो ! होरी की बहार ।
हाथ हाथ में है पिचकारी, रंग है पारावार ।।

कृष्ण कन्हैया झूंम झूंम कर, खेल रहे हैं होरी,
राधे रानी संग संग में, अहिरों की छोरी,
गुवाल गोपियां नांचन लागी, गा-गा मधुर धमार ।।
आई होरी की बहार ।।

तरूण गुजरियां भरी मटकियां, रंग डारै गहरो,
गोपी गुवाल सभी को बन गयो, वह फगवां चेहरो,
एक को एक पकर रंग डारैं,होरी को रंग यार ।।
आई होरी की बहार ।।

छैल छबिले कृष्ण चंद्रजी, पीरो रंग मंगायो,
राधा रानी घनी रसिली, बरसा ज्यूं बरसायो,
रंग रंगीले रंग से भीजे, रसिक लोग दिलदार ।।
आई होरी की बहार ।।

शिवदीन सयानों की यह रंगत, होरी खेले खूब,
संत सयानों की यह लीला, राम कृष्ण महबूब,
अनुपम और अनोखा आनन्द, सब सारन का सार ।।
आई होरी की बहार ।।

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