बुधवार, 4 मार्च 2015

हम होलीकी रातों में

रंग ये कोई
ले आये जज्बातों में
जी सकूँ
टूटे हुए हालातों में

रजा भी
गुमाँ करे शोहरत पर अपनी
दस्तक दे
नसीब भी मुलाकातों में

तकिये पर
रखा हो ओझ सूरज का
पुष्पों का
रश भरा हो मुस्काहटों में

तंग हो गली
खिखिलाहटों से अपनी
रुकावटें ना हों
दिल की बातों में

साग भात सा
मिलन लेकर आँखों में
रातभर जागे
हम होलीकी रातों में

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here हम होलीकी रातों में

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें