आज मौत को मै अपना कर आया हु
मोहब्बत को जमीन मे दफना कर आया हु
जीस पर यकिन था मुझे खुदा से भि ज्यादा
उस शख्श को भी आज आजमा के आया हु
नजरो का कसुर कहु इसे या दिल कि बेवकुफी
जिसको अपना माना उसी से धोका खा के आया हु
चोट दिया है किसने मुझे कैसे बताउ भी तुम्हे
जिसने चोट दिया उसे भुला कर आया हु
चाहत को मेरे उसने इस कदर रुसवा किया कि
आज उसके यादो के वजुद को मीटा कर आया हु
अब उसकि मरजी याद रखे या भुला दे मुझको
कफन खुद के चेहरे पर चढा कर आया हु….
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