जिजीविषा और हौसलें को
अपना पंख बना लिया।
नारी हुई सशक्त,मुक्त गगन
पर अपना घर बना लिया।
सहानुभूति की भीख न चाहे,
कोई अवरोध बने न राहों में।
अब वर्जनाएं दम तोड़ रही
सलोने स्वप्न समेटे बाँहों में।
रूढ़िवादिता की गहरी जड़ों
में कैद करो न आशाओं को।
फल विकास के लग जायेंगे
न काटो सत्य की शाखाओं को।
अस्मिता कर तार-तार नारी को
अबला और वंचिता बना दिया।
जो शक्ति स्वरूप बन सकती है
ज्वाला,उसे चिता में जला दिया।
किसी भी रिश्ते का नारी बिना
न निर्वाण है न निर्वाह है।
हेय दृष्टि से न देखो पुरुषों
स्त्री चाह है मंज़िलों की राह हैं।
भारत वर्ष के आकाश पटल पर
रजिया,दुर्गा और रानी लक्ष्मी बाई।
अपने साहस,आत्मविश्वास से
देश के शत्रुओं को धूल चटाई।
समस्त विश्व का वैभव नारी है
शीर्ष पदों पर आसीन हुईं।
स्थान”विशेष”दो नारी को हृदय में
प्रतिद्वन्दी नहीं पूरक,समाकीन हुईं।
वैभव”विशेष”
Read Complete Poem/Kavya Here नारी पूरक है।।।
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