रविवार, 8 मार्च 2015

वक्त पर कविता

है कौन जो विकल वेदना के पतझड़ को
मधुमास देता
विखर गये हों पतझड़ के पत्तों के मानिंद
सपने जीवन के जिसके
उस विटप को कौन फिर
जीने की नई आस देता
काल ही वह चक्र है
जो एक पल के लिए भी
रुक नहीं सकता कभी
छल कपट के बल पर जो
झुक नहीं सकता कभी
फिर क्यों देखते हैं हम सभी
वक्त के उस रूप को
जो छीन लेता सुख चैन अपने
क्रूर हाथों से कभी
दुःख की जब अनुभूति होती
दृगों से जब अंश्रु बहते
वक़्त से ही हमारे
गहन दुखों के घाव भरते
आज जो रो रहा है
वक़्त पल मैं उसे भी हंसा देता
दुखों के उन छणों को
सहज गति से भुला देता
पहचानता है जो गति वक़्त की
पहचानता है वक़्त उसको
दुखों की आंधियों में भी
भव सिन्धु से भी पार करता वक़्त उसको
ओमप्रकाश प्रकाश चमोला
अध्यापक

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