सोमवार, 9 मार्च 2015

अधुना

जल में , थल में , नभ में वो बढ़ती जाती खग सम है
नहीं जरुरत कहने की , वो सब में ही तो सक्षम है
फिर अपना सम्बल दिखलाया ,
सबको ये अहसास कराया
नहीं कभी थी कोमलांगना
ये देखो फिर आगे आई ,आई भारत की अधुना

ऊँचे ऊँचे शिखरों पर वो विजय पताका लिए खड़ी है
बांध पीठ पर ममता को वो कितने ही संग्राम लड़ी है
नर मन के , नर -नारी के उन भेदों को वो पटती जाती
अर्जुन शर सी “अबाध ” गति से लक्ष्य ओर वो बढ़ती जाती
ये देखो फिर आगे आई ,आई भारत की अधुना

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