- मन प्रफुल्लित हुआ अविरल
पाकर गुड़िया रूप खिलौना
अबसे पहले न हुआ स्पंदन
देखकर बेटी का रूप सलोनाजब से आई तुम मेरे जीवन में
जीने का पाया अंदाज अनोखा
बेटी तुम पुष्प मेरे आँगन का
किसी दशा न चाहू तुझे खोनानित नित बढे अमर बेल सी
तुझ से आँगन लगे सुहाना
शिथिलता होती क्षण में दूर
मुझे देखकर तेरा मुस्कानाकरलव करना चंचलता से
कभी तेरा रोना कभी हर्षाना
मन्त्रमुग्ध कर जाता आज भी
तेरा दौड़कर गोद में चले आनातुम हो मेरे जीवन का अभिप्राय
अब तुम ही पर सर्वस्व लुटाना
रौनक रहे बरकार मेरे गुलशन की
रब से चाहता बस इतना पानाज्यो ज्यो होता विस्तृत आकार
त्यों त्यों बढे मन का सकुचाना
अनमोल रत्न हो मेरे जीवन का
कैसे सहूँगा मै तेरा बिछड़ जानाकिस्मत में क्यों लिखा होता
सदैव पुष्प को ही अर्पण होना
जाने किसने ये रीति चलायी
बाप देता बेटी को देश निकालाजिन नयनो से सदा झड़ते थे फूल
आज बहे क्यों उनसे अश्रु की धारा
मै कैसा असहाय बनमाली अभागा
शुशोभित चमन अपने हाथो उजाड़ाकैसे समझाऊ अपने अंतर्मन को
सौभाग्य था मेरा तुझको पाना
धन्य हुआ मेरा जीवन बेटी जो
पाया मैंने तुझ सा अमूल्य खजानातुम मोरपंख मेरे शीश मुकुट की
तुम से उज्जवल मेरी आन-शान
तुम प्रतिष्ठा पुष्प मेरे गुलशन का
तुम से अलंकृत मेरा अभिमानगौरवन्वित तुम से मेरा ललाट
धन्य तेरा मेरे जीवन में आना
पाओगी हर क्षण अपने इर्द गिर्द
कभी मुश्किलो से तुम न घबरानातुम न रहना मात्र बेटी बन
Read Complete Poem/Kavya Here बाप का अभिमान
तुम से बनेगी मेरी पहचान
गर्व से कहूँगा इस जमाने से
बेटियाँ तो होती एक वरदान !!
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डी. के. निवातियाँ _______!!!
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