शुक्रवार, 6 मार्च 2015

भीग गया गोरी मन तेरा।

प्रेम की भर के पिचकारी जो मैंने तुझपे है डारी।
भीग गया गोरी मन तेरा,नज़र हुई फिर मतवारी।

पकड़ कलाई हाथों में चेहरे पे लगाने गुलाल हुए।
रंग लगने से पहले ही गाल,शर्मो हया से लाल हुए।

जीत गई फिर प्रेम प्रतिज्ञा,विवश हुई हठ बेचारी।
भीग गया गोरी मन तेरा, नज़र हुई फिर मतवारी।

मान-मनोव्वल करने लगे तुम,बात नहीं मेरी टालो।
पहले से ही रंगे प्रीत में अब न हम पर रंग डालो।

देख के उसका भोलापन ये नज़रें नज़रों से हारीं।
भीग गया गोरी मन तेरा,नज़र हुई फिर मतवारी।

पकड़ हुई जो ढीली फिर छुड़ा के खुद को बोली है।
रंग गुलाल डाल चेहरे पर,प्रिय!बुरा न मानो होली है।

तुमसे हंसी-ठिठोली में, खिली प्रेम की फुलवारी।
भीग गया गोरी मन तेरा, नज़र हुई फिर मतवारी।

यूँ बीत गए कई वर्ष मगर ये रंग न फीका हो पाया।
जीवन की हर होली के रंग,संग सदा तुझको पाया।

प्रेम “विशेष” यूँ हो गया हर साँस तुम्हीं पे है वारी।
भीग गया गोरी मन तेरा, नज़र हुई फिर मतवारी।

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