फागुन छेड़ रहा सरगम इंद्रधनुष सी धरा हुई।
मेहँदी रंग चढ़ा हाथों में गोरी भी अप्सरा हुई।
फूलों के सब रंग चुरा के लाई भंवरों की टोली।
होली लेकर आई है संग में,अरमानों की डोली।
हर्षोल्लास भरा तन-मन में,पिचकारी से प्रीत बहे।
लगा के हृदय से साजन को आनंदित मनमीत रहे।
सरहद पर सब खेले रंगों से,रक्त बहे न होली में।
मिट जाये लकीरें भेदभाव की द्वेष रहे न बोली में।
होली की अग्नि में दहन हो डाह,ईर्ष्या और अधर्म।
मर्मस्पर्शी मनोभाव हृदय में,जागृत कर दें सत्कर्म।
उमंग,तरंग रंग के संग, अद्भुत अनुभव प्रदान करे।
वैभव बरसे बरखा बन,जगत “विशेष” उत्थान करे।
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