शनिवार, 7 मार्च 2015

एक तुझमें समाया माँ

नींद तेरी रातों की
लौटा भी ना पाया माँ
तुमने अपनी गोद में
जाने कब तक सुलाया माँ

मैं लिपटा रहता हूँ
उलझनों में दुनिया की
भूल गया कब तक तूने
हाथों में झुलाया माँ

नसीब की दुहाई देता हूँ
मैं दिन रात फूटने की
बना कर हिस्सा अपना
मेरा जहां बनाया माँ

निर्लोभ पोषित किया
रोम रोम बनाया माँ
कहानी सुनाकर परियों की
सपनो को मेरे सजाया माँ

तुम दाता हो ,धात्री हो
निर्मल ,तुम उज्ज्वला
नूर इस ब्रम्हांड का
एक तुझमें समाया माँ

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